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कद्दू की सभा |
कद्दू ने एक सभा बुलाई
टिन्डा तोरी भिन्डी
आईं
लौकी कहीं नजर न आई
सब ने उसकी ढ़ूँढ़ मचाई
बैंगन बोला मैं जाता
हूँ
थकी हारी जब लौकी आई
सभा में उसने बात उठाई
सभा में उसने बात उठाई
बाकी हम सब हैं बेकार
मिर्च करेला चिढ़ कर
बोले
आलू की पोल तो हम खोलें
बच्चों को वो बहकाता
है
खिलाफ हमारे भड़काता
है
सब ने हाँ में हाँ
मिलाई
अब आलू की शामत आई
आलू बचाव में अपनी
बोला
मैं तो सीधा बहुत ही भोला
संग सब के मिल
जाता हूँ
एक से अनेक बन जाता
हूँ
जैसा चाहे पक जाता
हूँ
जैसा चाहे ढल जाता हूँ
जैसा चाहे ढल जाता हूँ
बच्चों की पसंद
मैं जानूँ
तभी तो प्यारा कहलाऊँ
*****************
महेश्वरी कनेरी
नोट: बच्चों सभी सब्जियों की अपनी उपयोगिता होती है..स्वस्थ रहना है तो सभी सब्जियाँ खानी चाहिए
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
ReplyDeleteनोट: बच्चों सभी सब्जियों की अपनी उपयोगिता होती है..स्वस्थ रहना है तो सभी सब्जियाँ
खानी चाहिए
सही बात !
मजेदार कविता
ReplyDeleteहाँ भई आलू की ये विशेषता तो है ...
ReplyDeleteसंग सब के मिल जाता हूँ
एक से अनेक बन जाता हूँ
मजेदार कविता
:-))
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दी.....
फिर से बच्चा बन गए.....
सादर
अनु
सब्ज़ियों की पोल खोल. बच्चे इसे बहुत पसंद करेंगे. बहुत प्यारी कविता.
ReplyDeleteMinakshi Pant.. has left a new comment on post "कद्दू की सभा":
ReplyDeleteवाह अच्छी कविता बन पड़ी |
बहुत प्यारा बाल गीत...
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