मेरे स्नेही जन

Tuesday, October 9, 2012

कद्दू की सभा

कद्दू की सभा


कद्दू ने एक सभा बुलाई
टिन्डा तोरी भिन्डी आईं
लौकी कहीं नजर न आई
सब ने उसकी ढ़ूँढ़ मचाई

                    बैंगन बोला मैं जाता हूँ
              ले उसे अभी आता हूँ
             थकी हारी जब लौकी आई
            सभा में उसने बात उठाई
         

बच्चें,आलू से करते प्यार
बाकी हम सब हैं बेकार
मिर्च करेला चिढ़ कर बोले
आलू की पोल तो हम खोलें

बच्चों को वो बहकाता है
खिलाफ हमारे भड़काता है
सब ने हाँ में हाँ मिलाई
अब आलू की शामत आई


आलू बचाव में अपनी बोला
मैं तो सीधा बहुत ही भोला
संग सब के मिल जाता हूँ
एक से अनेक बन जाता हूँ
 जैसा चाहे पक जाता हूँ
 जैसा चाहे ढल जाता हूँ
बच्चों की पसंद मैं जानूँ
तभी तो प्यारा कहलाऊँ
*****************
महेश्वरी कनेरी

नोट: बच्चों सभी सब्जियों की अपनी उपयोगिता होती है..स्वस्थ रहना है तो सभी सब्जियाँ खानी चाहिए 

7 comments:

  1. हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
    नोट: बच्चों सभी सब्जियों की अपनी उपयोगिता होती है..स्वस्थ रहना है तो सभी सब्जियाँ
    खानी चाहिए
    सही बात !

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  2. हाँ भई आलू की ये विशेषता तो है ...
    संग सब के मिल जाता हूँ
    एक से अनेक बन जाता हूँ


    मजेदार कविता

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  3. :-))

    बहुत बढ़िया दी.....
    फिर से बच्चा बन गए.....

    सादर
    अनु

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  4. सब्ज़ियों की पोल खोल. बच्चे इसे बहुत पसंद करेंगे. बहुत प्यारी कविता.

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  5. Minakshi Pant.. has left a new comment on post "कद्दू की सभा":

    वाह अच्छी कविता बन पड़ी |

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  6. बहुत प्यारा बाल गीत...

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