काले –काले बादल आ
छम-छम पानी बरसा
प्यासी
धरती तुम्हें पुकारे
मोर
पपीहा तुम्हें निहारे
रिमझिम का गीत सुना
काले –काले बादल आ
मेरा
भैया रोता है
गर्मी
में नहीं सोता है
ठंडी
हवा का झोंका ला
काले –काले बादल आ
कागज़ की हम नाव बनाएं
पानी
में उसे चलाएं
वर्षा
से आँगन भर जा
काले –काले बादल आ
छम-छम पानी बरसा
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महेश्वरी
कनेरी
बढिया बाल कविता
ReplyDeleteबहुत सुंदर
एक मुट्ठी सरसों
ReplyDeleteपीट-पीट बरसो
आपकी रचना
मुझे भी बचपन में
ले गई दीदी
सादर
बहुत ही सुन्दर बाल रचना..
ReplyDelete:-)
वर्षा से आँगन भर जा
ReplyDeleteकाले –काले बादल आ
छम-छम पानी बरसा.....jaroor aayega geet hai hi itna sundar ....
मैं भी आ गई भीगने
ReplyDeleteबहुत प्यारा बाल गीत...
ReplyDeleteप्यासी धरती तुम्हें पुकारे
ReplyDeleteमोर पपीहा तुम्हें निहारे
रिमझिम का गीत सुना
काले –काले बादल आ
सुंदर ..मधुर आवाहन ! बधाई आपको !
बहुत प्यारी कविता
ReplyDeletebahut hi manohar ,dil ko choo gai aapki kavita---
ReplyDeletepoonam