मेरे स्नेही जन
Thursday, January 15, 2015
Tuesday, December 10, 2013
सरदी आई ,सरदी आई
सरदी आई ,सरदी आई
ठंडी ने कहर बरसाई
मम्मी कहती स्वेटर पहनो
शाम से पहले घर पहुचो
कैसी मुसीबत है भाई
सरदी आई, सरदी आई
पहाडो ने फिर ओढी चादर
बर्फ की वो झिल-मिल झालर
सर्द हवा ने ली अंगड़ाई
सरदी आई सरदी आई……
धूप थकी सी आती है
कभी बादल में छुप जाती है
लुक्का छुप्पी हमें न भाई
सरदी आई ,सरदी आई……
दिन छोटे और लम्बी रातें
भूल जाओ अब खेल की बातें
नही छूटती अब रजाई
सरदी आई सरदी आई……
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महेश्वरी कनेरी
Wednesday, August 14, 2013
हिन्दुस्तान हमारा है
उठो देश के वीर जवानों
माँ ने हमें पुकारा है
दुश्मन ने सीमा पर
फिर हमको
ललकारा है
इस मिट्टी के कण-कण में
बहता खून हमारा है
दूर हटो तुम दूर हटो
हिन्दुस्तान हमारा है
कायर नहीं हम
अमन शान्ति के रखवाले
मन के सीधे सच्चे
पर हैं हिम्मत वाले
माँ की रक्षा के खातिर
सीने में गोली खाएंगे
मर जाएंगे मिट जाएंगे
वीर सपूत कह लाएंगे
नन्हें फूल चमन के
ये बगिया सबसे न्यारी है
धरती माँ तू हमको
जान से भी प्यारी है
उठो देश के वीर जवानों
माँ ने हमें पुकारा है
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महेश्वरी कनेरी
Saturday, July 6, 2013
अलादीन का चिराग
अगर मुझे मिल जाता
बैठ कंधे पर जिन्न के
सारी दुनिया घूम के आता
अलमस्त पक्षी सा कभी
आसमान में उड़ जाता
तारों से बातें करता कभी
चंदा से हाथ मिलाता
लुका छिपी खेल-खेल में
बादलों में छिप जाता
कितना भी ढ़ूँढ़ती मुझे
मैं हाथ कभी न आता
चंदा मामा के घर जाता
बूढ़ी नानी से मिल आता
कितना मजा आता ,माँ
जो चाहूँ वो मिल जाता
“हुकुम मेरे आका”, कह वो
पलक झपकते ही आजाता
सारी दुनिया की खुशियों से
झोली मेरी भर जाता
अलादीन का चिराग,माँ
अगर मुझे मिल जाता
बैठ कंधे पर जिन्न के
सारी दुनिया घूम के आता
****************
महेश्वरी कनेरी
Sunday, June 2, 2013
काले –काले बादल आ
काले –काले बादल आ
छम-छम पानी बरसा
प्यासी
धरती तुम्हें पुकारे
मोर
पपीहा तुम्हें निहारे
रिमझिम का गीत सुना
काले –काले बादल आ
मेरा
भैया रोता है
गर्मी
में नहीं सोता है
ठंडी
हवा का झोंका ला
काले –काले बादल आ
कागज़ की हम नाव बनाएं
पानी
में उसे चलाएं
वर्षा
से आँगन भर जा
काले –काले बादल आ
छम-छम पानी बरसा
****************
महेश्वरी
कनेरी
Thursday, May 2, 2013
मेरा भैया
मेरा भैया |
मेरा भैया सबसे प्यारा
गोलू-मोलू न्यारा-न्यारा
बाँहों के झूले में उसे झुलाती
गीत चंदा का गाकर उसे सुलाती
सब की आँखों का,है वो तारा
मेरा भैया सबसे प्यारा ....
होठ घुमा घुमा कर वो बतियाता
अंगु-अंगु कह कर मुझे हँसाता
अनबुझ शब्दों का,है वो पिटारा
मेरा भैया सबसे प्यारा ....
चमकीली गोल-गोल मुस्काती आँखें
नन्हें होठ जैसे हों संतरे की फाँकें
हम सबका है, वो दुलारा
मेरा भैया सबसे प्यारा....
ईश्वर से मैंने भैया माँगा था
ऐसा ही भैया ,मैंनें चाहा था
निर्मल पावन प्यार हमारा
मेरा भैया सबसे प्यारा
गोलू-मोलू न्यारा-न्यारा
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महेश्वरी कनेरी
Saturday, April 13, 2013
बादल
भीगा
वर्षा में जब राजू
आकर
माँ से बोला
माँ ! एक बात बतलाओ
क्या
है राज मुझे समझाओ
उमड़
घुमड़ कर बादल आते
झम-झम पानी वे बरसाते
कहाँ
से आते बादल, माँ
!
कहाँ
जा छिप जाते ?
वर्षा
से आँगन भर जाता
इतना
पानी कहाँ से आता
क्या
है राज मुझे समझाओ
क्या
है बात मुझे बतलाओ
माँ
ने बेटे को बतलाया
राज बादल
का उसे समझाया
सूरज
जब गरमी फैलाता
नदी
,सागर का पानी
तब भाप बन
उड़ जाते
और नभ
पर जा छा जाते
असंख्य
जल बूँद लिए वे
इधर
उधर मड़राते
यही
तो बादल कहलाते
उमड़
घुमड़ कर जब वो चलते
जा
पर्वत से टकराते
तब
बनकर वर्षा वे
वापस
धरती पर आजाते
इसी
तरह धरती का पानी
वापस
धरती पर आजाता
रिम-झिम गीत सुनाकर
जग
में खुशहाली भर जाता
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महेश्वरी
कनेरी
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